मुगलों से पराजित होने के बाद राजपूतों को एक गंभीर संकट का सामना करना पड़ता था। और इसलिए राजपूत महिलाओं ने पराभव के बाद अपमान एवं दुर्व्यवहार से बचने के लिए के साहसी कृत्य करना शुरू किया। जिसमे रानी पदमावती का बलिदान सबसे चर्चित माना जाता है। इस वीडियो में देखिये इस साहसी परंपरा के बारे में
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१ जौहर, राजा के पराभव के बाद सामूहिक आत्म-बलिदान की एक परंपरा थी जो राजपूत साम्राज्य में व्यापक रूप से प्रतिबद्ध थी
२ हर प्राचीन राजपूत महल में जौहर कुंड था, जो गहरा खुदा हुआ और विशाल चौकोन के आकर जैसा दिखता था
३ महत्वपूर्ण वैदिक संस्कार के बाद, शाही महारानी अपने बच्चों के साथ जलते हुए जौहर कुंड में अपने जीवन का त्याग करती थी
४ इस परंपरा की जड़ें अब तक स्पष्ट नहीं हैं, परंतु प्रारंभिक दस्तावेज बताते हैं कि इसके पीछे का कारण राजपूत साम्राज्यों की शाही महिलाओं की प्रतिष्ठा(गरिमा) का रक्षण करना था
५ युद्ध में पराजित होने के बाद विदेशी आक्रमणकारियों (विशेषकर मुगल) द्वारा कैद होने से बचने के लिए शाही घराने की महिलाए यह कदम इसलिए उठाती
६ इस कैद का बच्चों की गुलामी, महिलाओं के बलात्कार और निर्दोष लोगों की हत्या परिणाम होता था। इस प्रकार के निर्दयी भाग्य से स्वयं को बचाने के लिए राजपूत रानिया और अन्य महिलाओं ने इस भयावह कृत्य को अपनाया था
७ इन सभी घटनाओं में फ़ारसी उपाख्यान में वर्णित सबसे पहली घटना १३०१ की रणथंभौर की अलाउद्दीन खिलजी द्वारा घेराबंदी की है
८ दूसरी और सबसे चर्चित घटना चित्तौड़गढ़ किले में फिर से अलाउद्दीन खिलजी से पराजित होने के बाद घटी और जो राणा रावल रतन सिंघ की दूसरी पत्नी रानी पदमिनी द्वारा संचालित थी।
९ यहाँ और एक परंपरा देखने को मिलती है जो बहादुर योद्धाओं द्वारा की जाती है जिसमे वे पराजित होने के बाद युद्धभूमि छोड़ने के बजाय शत्रुओं का आगे बढ़कर सामना करते है ताकि उन्हें वीरगति प्राप्त हो। इस परंपरा को साका कहा जाता है
१० लोकप्रिय गाथाएं बताती है की जब भी शत्रुओ ने जित के बाद शाही किले पर कब्ज़ा किया तो उन्हें निर्जन किले के अलावा कुछ नहीं मिला जो बहादुर राजपूतों के वीरता का साक्षी था
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